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सम॒श्विनो॒रव॑सा॒ नूत॑नेन मयो॒भुवा॑ सु॒प्रणी॑ती गमेम। आ नो॑ र॒यिं व॑हत॒मोत वी॒राना विश्वा॑न्यमृता॒ सौभ॑गानि ॥१८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sam aśvinor avasā nūtanena mayobhuvā supraṇītī gamema | ā no rayiṁ vahatam ota vīrān ā viśvāny amṛtā saubhagāni ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सम्। अ॒श्विनोः॑। अव॑सा। नूत॑नेन। म॒यः॒ऽभुवा॑। सु॒ऽप्रनी॑ती। ग॒मे॒म॒। आ। नः॒। र॒यिम्। व॒ह॒त॒म्। आ। उ॒त। वी॒रान्। आ। विश्वा॑नि। अ॒मृ॒ता॒। सौभ॑गानि ॥१८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:42» मन्त्र:18 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:19» मन्त्र:8 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:18


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मयोभुवा) सुख के करनेवालो (सुप्रणीती) उत्तम प्रकार वर्त्ती गई नीति जिनसे ऐसे अध्यापक और उपदेशक जनो ! जो आप दोनों (नः) हम लोगों के लिये (रयिम्) लक्ष्मी को (आ, वहतम्) प्राप्त कराइये (उत) भी (वीरान्) श्रेष्ठ शूरता आदि गुणों से युक्त शूरवीर जनों को (आ) प्राप्त कराइये और भी (विश्वानि) सम्पूर्ण (अमृता) नित्य (सौभगानि) सुन्दर ऐश्वर्य्यों के भावरूप को (आ) प्राप्त कराइये उन (अश्विनोः) अध्यापक और उपदेशकों के (नूतनेन) नवीन (अवसा) रक्षण से हम लोग सम्पूर्ण नित्य सुन्दर ऐश्वर्य्यों के भावरूपों को (सम्, गमेम) उत्तम प्रकार प्राप्त होवें ॥१८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! विद्वानों से रक्षित और बोध को प्राप्त हुए आप लोग लक्ष्मी और मनुष्यों के सहाय से सम्पूर्ण ऐश्वर्य्यों को प्राप्त हूजिये ॥१८॥ इस सूक्त में विश्वेदेव रुद्र और विद्वानों के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह बयालीसवाँ सूक्त और उन्नीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मयोभुवा सुप्रणीती अध्यापकोपदेशकौ ! यौ युवां नो रयिमा वहतमुत वीराना वहतमपि च विश्वान्यमृता सौभागान्या वहतं तयोरश्विनोर्नूतनेनावसा वयं विश्वान्यमृता सौभगानि सङ्गमेम ॥१८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सम्) (अश्विनोः) अध्यापकोपदेशकयोः (अवसा) रक्षणेन (नूतनेन) (मयोभुवा) सुखं भावुकौ (सुप्रणीती) सुष्ठु प्रगता नीतिर्याभ्यां तौ (गमेम) प्राप्नुयाम (आ) (नः) अस्मान् (रयिम्) श्रियम् (वहतम्) प्रापयतम् (आ) (उत) अपि (वीरान्) श्रेष्ठान् शूरान् शौर्यादिगुणोपेतान् (आ) (विश्वानि) समग्राणि (अमृता) नित्यानि (सौभगानि) शोभनानामैश्वर्याणां भावरूपाणि ॥१८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! विद्वद्रक्षिता बोधिताः सन्तो यूयं श्रियमुत्तममनुष्यसहायेन सर्वाण्यैश्वर्य्याणि प्राप्नुतेति ॥१८॥ अत्र विश्वेदेवरुद्रविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति द्विचत्वारिंशत्तमं सूक्तमेकोनविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! विद्वानांकडून रक्षित व बोधित झालेले तुम्ही लक्ष्मी व उत्तम लोकांच्या साह्याने संपूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त करा. ॥ १८ ॥